Wednesday, May 18, 2011

ताजमहल..एक छुपा हुआ सत्य

बी.बी.सी... कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........


ताजमहल का आकाशीय दृश्य......

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आतंरिक पानी का कुंवा............
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ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य cid:part3.09080704.08060501@oracle.com
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....
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शिखर के ठीक पास का दृश्य.........cid:part5.03000607.02030403@oracle.com  
आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....
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प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........cid:part7.04050901.06080907@oracle.com  
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........cid:part8.08080100.03070300@oracle.com  
पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........cid:part9.01040608.06050105@oracle.com  
विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....cid:part10.09070103.01050702@oracle.com  
मकबरे के पास संगीतालय...........एक विरोधाभास.........
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ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........

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निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........
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दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ......
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निचले तल पर जाने के लिए सीढियां........
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कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..cid:part16.05080508.04010801@oracle.com  
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे सेएककमरा......cid:part17.07030700.04030709@oracle.com  
२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......

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अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य..   cid:part19.05050106.09010306@oracle.com 
एक बंद कमरे की वैदिक शैली में
निर्मित छत......
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ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....

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दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....
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बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......

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बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......

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बादशाह नामा के अनुसार,, इस स्थान पर मुमताज को दफनाया गया......... cid:part25.05090007.00040404@oracle.com

 
अब कृपया  इसे पढ़ें ............

प्रो.पी... एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........

"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"

प्रो.ओक... अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....

 
ओक कहते हैं कि......

ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

 
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,
=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......
=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ......
=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...

और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....

 
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

 ==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...

 
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

 
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

 
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

 
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है....... 

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं 

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......

==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????

 

राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....

 
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .....
ज़रा सोचिये....!!!!!!

 
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????  
तथा......
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???? ???
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
 
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......




 
"कृपया इस संदेश को सभी को भेजें 
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Tuesday, May 10, 2011

लादेन की मौत हकीकत या अफवाह

औसामा बिन मोहम्मद बिन अवद बिन लादेन यानी आतंक का दूसरा नाम। 10 मार्च 1957 को रियाध, सउदी अरब में एक धनी परिवार में जन्मे ओसामा बिन लादेन अल कायदा नामक आतंकी संगठन का प्रमुख था। यह संगठन 9 सितंबर 2001 को अमरीका के न्यूयार्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के साथ विश्व के कई देशों में आतंक फैलाने और आतंकी गतिविधियां संचालित करने का दोषी है।
अमेरिका में 9/11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसाम द्वारा किए विध्वंसकारी कांड ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। फिर क्या तब दिन से लेकर मिशन एबटाबाद के दिन तक मानों ओसामा अमेरिका सबसे बड़ा दुश्मन था। 9/11/2001 से लेकर तीन मई 2011 तक अमेरिका को बस यही तलाश थी कि आखिर लादेन कहां छुपा है। और जैसे अमेरिका की खुफिया एजेंसी को ये पता चला कि लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में है। उसने तुरंत कार्रवाई की और लादेन की मौत का दिन मुकर्रर कर दिया।
बस यहीं से मेरे संदेह की घंटी घनघनाने लगी कि आखिर जो आतंकवादी अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन रहा... जिसको ढूंढने के लिए इस सबसे ताकवर देश ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया क्या वह लादेन के मिलने पर उसे तुरंत मौत के घाट उतार देगा... नहीं कभी नहीं अगर अमेरिका ओसामा को मारना ही चाहता तो कब का मार देता उसे इतना कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती... ये मेरा व्यक्तिगत विचार है कि लादेन अभी जिंदा है और अमेरिका के पास कैद है। इसके मेरे पास तर्क भी हैं और हो सकता है कि वो आपको पसंद आएं या न आएं पर मैं फिर अपने ब्लाग के माध्यम से अपने तर्क रख रहा हूं...
1- मेरा पहला तर्क अमेरिका के मिशन एबटाबाद के बाद ओसामा की जो तस्वीरें रिलीज की गईं वो मेरे विचारों से मैच नहीं खाती... क्यों की ये सभी जानते हैं कि लादेन बहुत बड़ा जिहादी था और वे मर सकता था लेकिन जेहाद के खिलाफ नहीं जा सकता था... इस आधार पर लादेन के मरने के बाद जो तस्वीरें रिलीज की गईं उनमें लादेन की दाढ़ी काली दिखाई गई... जबकी हकीकत में लादेन की दाढ़ी सफेद हो गई थी। अगर आप कहें कि उसने डाई की हुई होगी तो शायद मेरा मानना है कि जेहाद में ये सब करना मना है... इसलिए लादेन और डाई कभी नहीं...
2- मेरा दूसरा तर्क जब अमेरिका को लादेन का पता लग ही गया था और उसे मारना ही उसका मिशन था तो आज के आधुनिक दौर में अमेरिका पास ऐसी टेक्नोलाजी है कि वह अपने देश में ही बैठे बैठे मिनी मिशाइल के जरिए एबटाबाद में लादेन की हवेली को टारगेट करके उड़ा देता। फिर उस हवेली में कौन मरता या नहीं इससे अमेरिका को कोई  फर्क नहीं पड़ता...
3- मेरा तीसरा तर्क जब अमेरिका के चौपर एबटाबाद पहुंचे और वहां अमेरिकी कमांडों ने कुरियर के भाई, लादेन के बेटे खालिद को गोली मार दी और उसकी पत्नी की टांग में गोली मार कर घायल कर दिया तो फिर अकेले लादेन को काबू करना उन कामांडो के लिए बड़ी बात नहीं थी, और वह लादेन की लाश अमेरिका लाने की बजाए उसे जिंदा अपने देश ले जाता।
4- मेरा चौथा तर्क इस मिशन के बाद अमेरिका जो दावे कर रहा है कि एबटाबाद में लादेन की हवेली से नेवी सील्स के कमांडोज को पांच कंप्यूटर, दस हार्ड ड्राइव और 100 से ज्यादा डाटा स्टोरेज डिवाइस जब्त किए हैं. आशंका हैं। और इनके बल पर वह ये कह रहा है कि इनमें अल कायदा के सदस्यों और आगामी हमलों के बारे में जानकारी भी होगी। तो मैं कहूंगा कि अमेरिका इतना मूर्ख नहीं है कि वह जानकारियों की सबसे बड़ी डिवाइस (ओसामा बिन लादेन) को ही मार दे... जिससे उसे काफी अहम राज मिल सकते हैं....

इसके अलावा भी मेरे पार लादेन के जिंदा होनें के काफी छोटे छोटे तर्क हैं। पर मैं अपने इन्हीं तर्कों के आधार पर ये जानना चाहता हूं कि मैं कहां तक सहीं हूं। मुझे आपकी राय का इंतजार है ताकी मैं उनको भी अपने ब्लाग के माध्यम से दूसरों तक पहुंचा सकूं।

Wednesday, April 13, 2011

दाग तो लगना ही था....

प्रसिद्ध समाजसेवी और छोटे गांधी के नाम से विख्यात अन्ना हजारे दिल्ली के जंतर मंतर में आमरण अनशन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी वो वाकई काबिले तारीफ है। अन्ना की जीत सिर्फ अन्ना की जीत ही नहीं है, बल्कि ये पूरे भारत की जीत है।
इस भ्रष्टाचार बनाम भारत की लड़ाई में जो भारत की जीत हुई है। उसने सारे भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ा दी है। या ये भी कह सकते हैं कि इस जीत ने भ्रष्टाचारी नेताओं को उस हालत में ला खड़ा किया जैसे बिना विष का सर्प फुफकार तो मार सकता है पर डश नहीं सकता। इसीलिए अब हमारे देश के ये भ्रष्टाचारी नेता अन्ना पर भी कालिख लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
समाचार पत्र पढ़ते समय जब मैने ये पढ़ा कि भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अन्ना हजारे पर ये तोहमत मढ़ी कि अन्ना जो यह कर रहे हैं वे लोक तंत्र का अपमान है। तो वाकई मैं हंस पड़ा। मेरे जहन में यही बात आई कि हो न हो आडवाणी भारत का प्रधानमंत्री न बन पाने के कारण पगला गए हैं। फिर हों भी क्यों न ? आखिर बुढ़ापे आदमी वैसे ही सठिया जाता है। अन्ना ने आडवाणी को जो इस तोहमत का जवाब दिया वो लाजवाब था। गांधीवादी अन्ना ने अपने शब्दभेदी बांणों से जवाब देते हुए कहा कि अगर आडवाणी जैसे नेता सही रास्ते पर चलते तो उन्हें आज आंदोलन की जरूरत नहीं पड़ती। मैं तो यही कहूंगा कि अब सभी भ्रष्टाचारी नेताओं को ये बात समझ आ जानी चाहिए कि ये लोग हमारे देश की भोली भाली जनता को देश राज्य और धर्म के नाम पर काफी लूट चुके। अगर अब भी ये नेता नहीं सुधरे तो जनता का ऐसा हथोड़ा चलेगा कि ये दुबारा सत्ता का मुह तक नहीं देख पाएंगे।
मैं यहां सिर्फ भाजपा और उसके नेताओ की ही बात नहीं कर रहा हूं। बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि भारत में ऐसी कोई भी पार्टी ही नहीं बची जिसके नेता और कार्य भ्रष्टाचार से मुक्त हों। अब कांग्रेस को ही ले लीजिए इतने बड़े-बड़े  घोटाले होने के बाद भी वो चुप है। प्रधानमंत्री तो ऐसे है जैसे एक मासूम बच्चा। जिसके दामन में तो एक भी दाग नहीं हैं पर वो अपने मां-बाप के आदेश के अलावा अपने विवेक से कुछ भी नहीं कर सकता है, यही हालत डा. मनमोहन सिंह की है। वे मन से तो सभी को मोह लेते हैं पर उनमें वो ऐसे सिंह नहीं जो सोनिया गांधी की गलत सलाह का विरोध कर सके। राजा ने 1.76 लाख करोड़ रुपए का 2जी घोटाला किया हुआ क्या? वे नाम के लिए तो सलाखों के पीछे हैं पर जेल में भी राज भोग रहे हैं।
एसी जेल, 5स्टार होटल जैसा खाना, टीवी, म्यूजिक, नौकर चाकर सभी सुविधाएं उन्हें जेल में मिल रहीं हैं। मैं बड़ी बात नहीं कहूंगा अगर सरकार हमारे देश के किसी भी गरीब जनता से ये पूछे कि तुम्हे राजा के जैसे सुविधाओं वाली जेल में रहना है तो मैं कहूंगा कि हर गरीब यहीं कहेगा कि उसे बिना किसी जुर्म के उस जेल में डाल दो। आपको मेरी बातों पर हंसी भी आ रही होगी पर ये सही मायने में बहुत बड़ी बात है। अगर मेरे हांथ में कानून बनाने की शक्तियां होती तो मैं सबसे पहले यही कानून बनाता कि चाहे वो कोई भी ब्यक्ति हो नेता हो राजनेता हो या आम आदमी हो। सभी को एक जैसी सजा मिलेगी। सभी को रिमांड या सजा के दौरान एक जैसी जेल और सुबिधाएं मिलेंगी। लेकिन मुझ अकेले के सोचने कुछ नहीं होने वाला क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता? हमें अन्ना हजारे जैसे देश भक्तों की जरूरत है जो एक ऐसी आंधी को लेकर आएं जिसके सामने सारी ताकते झुकने पर मजबर हो जाएं।
मैंने तो अपनी मन की बात और भड़ास दोनो अपने लेख के द्वारा निकाल दी और आपको अपने ब्लाग पूरी हकीकत के द्वारा रूबरू भी करा रहा हूं। पर मुझे आपके सुझावो का भी इंतजार है... जरूर अपने सुझावो मुझे अवगत कराएं कि ऐसे भ्रष्टाचारी नेताओं के साथ क्या किया जाना चाहिए?

Sunday, December 12, 2010

भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा भारत

कहने को तो देश में भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने की हर स्तर पर कोशिश की जा रही है, लेकिन ये प्रयास महज भाषणों और कागजी कार्रवाई तक ही सीमित है। भ्रष्टाचार के चलते देश की लगभग 462 अरब डालर की राशि स्विस बैंकों में जमा है।
 इस बढ़ते भ्रष्टाचार का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि देश के गरीबों को बुनियादी सुविधाएं देने के नाम हमारे मंत्री, नेता, प्रशासनिक अमला और समाज सेवी मिलकर हर साल उनसे करीब 900 करोड़ रुपए की रिश्वत हथिया लेते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह रिश्वत की कमाई सीधे स्विस बैंकों में चली जाती है। विभिन्न देशों में व्याप्त भ्रष्टाचार का अध्ययन करने वाले अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की भारत में कार्यकारी निदेशक अनुपमा झा का इस बारे में कहना है कि देश में भ्रष्टाचार ऊपरी स्तर से निचले स्तर की ओर फैल रहा है। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि भारत में भ्रष्टाचार एक कारोबार की तरह चल रहा है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्ट देशों की हालिया सूची में भारत को 87वें स्थान पर रखा गया है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि का अध्ययन करने वाले एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफाम्स से जुड़े़ आईआईएम के पूर्व प्रोफेसर जगदीप छोकर का भी यही मानना है कि भ्रष्टाचार की समस्या का प्रमुख कारण राजनीतिक दलों की कमजोर इच्छाशक्ति है। उनका कहना है कि हर चुनाव में दागी और भ्रष्ट नेताओं को टिकट देने में राजनीतिक दल जरा भी परहेज नहीं करते हैं। वर्तमान कांग्रेस सरकार ने भी चुनाव से पूर्व जनता से यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के सौ दिनों के भीतर स्विस बैंकों में जमा देश का काला धन देश में वापस लाया जाएगा, लेकिन सत्ता हाथ में आते ही वह अपने इस वादे की ओर सोच भी नहीं रहे है।
अगर देश में अब तक हुए बड़े घोटालों की ओर नजर डाली जाए तो यही तथ्य सामने आते हैं कि या तो उन पर सही कार्रवाई नहीं हुई और यदि हुई है तो उन पर सालों से केस चलते आ रहे हैं। हमरी इसी लचर कानूनी कार्रवाई के चलते भ्रष्टाचारी मौज से अपना जीवन जी रहे हैं और नए घोटाले की योजना बना रहे हैं।
1-  बोफोर्स घोटाला - 1986 में हुए बोफोर्स घोटाले में करीब 1800 करोड़ रुपए की हेराफेरी सामने आई थी। यह घोटाला राजीव गांधी की सरकार के समय में हुआ था। इस मामले की जांच कर रही सीबीआई अब तक सिर्फ इस घोटाले मुख्य आरोपी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ इंटरपोल से रेड कार्नर नोटिस ही जारी करवा सकी है। जबकि लगभ 25 साल गुजर जाने की बाद भी केस चल रहा है।
2-  हवाला कांड - 1991 में कश्मीर में कुछ हवाला दलालों की गिरफ्तारी से हवाला कांड का खुलासा हुआ। कई राजनीतिक हस्तियों का जुड़ोव इस कांड में पाया गया। करीब 80 करोड़ रुपए के इस घोटाले घोटाले में कई बड़े नेताओं के नाम सामने आए। इनमें बीजेपी नेता लालकृष्ण आडेह्लाणी, विद्याचरण शुक्ल, मदन लाल खुराना, आरजेडी के शरद यादव और कांग्रेस के बलराम जाखड़ जैसे दिग्गज नेताओं का नाम उछला। इस मामले की भी जांच कर रही सीबीआई अब तक किसी भी आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं जुटा सकी।
3-  चारा घोटाला- 1996 में इस घोटाले का खुलासा हुआ था। करीब 950 करोड़ रुपए का चारा राजद सुप्रीमों लालू यादव खा गए और उन्हें डकार तक नहीं आई। इसमें 2000-2007 तक 58 पूर्व अधिकारी व सप्लायर्स दोषी पाए गए। लालू यादव और जगन्नाथ मिश्र को भी कई बार रिमांड में लिया गया। 2007 में दो सौ लोगों को सजा हुई, लेकिन कोई भी बड़ा राजनीतिज्ञ दोषी साबित नहीं हुआ। और वो सफेदपोस हर चुनाव में जनता को ईमानदारी का पाठ पढ़ा रहे हैं। शर्म की बात यह है कि इस घोटाले में भी केस जारी है।
4-  बराक मिसाई घोटाला- तहलका के स्टिंग आपरेशन से 2001 में ये मामला सामने आया। करीब 585 करोड़ रुपए के इस घोटाले में सीबीआई ने पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिज, समता पार्टी अध्यक्ष जया जेटली और पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल सुशील कुमार को शामिल होने का आरोप लगाया। जार्ज फर्नांडिज ने सीबीआई के आरोप के बाद रक्षामंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि सीबीआई को इस मामले में कामयाबी हाथ नहीं लगी है।
5- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला- यह घोटाला अब तक हुए घोटालों में सबसे बड़ा है। हालिया जानकारी के अनुसार पूर्व दूर संचार मंत्री ए राजा ने एक लाख 76 हजार करोड़ का टेलीकाम घोटाला कर सबको सकते में ला दिया। इसे लेकर उन्हें अपने मंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह घोटाला सिर्फ एक लाख 76 हजार करोड़ का नहीं बल्कि इसका दायरा बहुत बड़ा है। इस सिलसिले में सीबीआई ने राजा सहित कुछ अन्य अधिकारियों व उनके रिश्तेदारों के घर पर छोपेमारी की और उसे कुछ आपत्तिजनक सबूत भी हाथ लगे हैं। इसके बाद भी राजा अपने आपको बेगुनाह बता रहे हैं। इसी विवाद को लेकर पूरा का पूरा शीत सत्र भी जेपीसी की भेंट चढ़ गया। इतना सब हो जाने के बाद भी इसका अभी कोई हल नहीं निकला और अगर ऐसी लचर कानून व्यवस्था रही तो शायद इस मामले का भी कोई हल नहीं निकल सकेगा और अन्य भ्रष्टाचारियों की तरह राजा भी अगले चुनाव में आम जनता को ईमानदारी का पाठ पढ़ाते नजर आएंगे।

Wednesday, December 1, 2010

मेरा वो पहला अहसास


मैं गांव में पला बढ़ा १२वीं कक्षा तक पढ़ाई भी ग्रामीण परिवेश में की। १२वीं के बाद मेरे साथ के ज्यादातर दोस्त इलाहाबाद जाने की बाद कर रहे थे। मेर बड़े भाई भी उस समय इलाहाबाद में ही पढ़ रहे थे। सने २००१ में १२वीं की परीक्षा देने के बाद मैं भी इलाहाबाद गया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगा। आखिरकार मैंने परीक्षा दी और बेहतर नंबरों से पास हुआ। फिर काउंसलिंग का टेंशन। अपने सभी सीनियरों से राय लेता था कि कौन से विषय लूं, किस विषय का करियर बेहतर होगा। आखिर सुझव लेते-लेते एडमीशन प्रक्रिया भी पूरी हो गई। मैंने दारागंज में रूम लिया और कुछ दिनों बाद मेरे बड़े भाई गांव चले गए और मैं अकेले ही रहने लगा।
शाम का वक्त था, बारिश हो रही थी। मैं रूम में था। बारिश देखने के लिए मैं अपनी बालकनी पर खड़ा हो गया। लोग भीगते हुए आ-जा रहे थे। अचानक मेरी निगाह बगल के मकान पर गई। मेरा रूम दूसरी मंजिल पर होने के कारण बगल की छत साफ-साफ दिखाई दे रही थी। मेरी नजर जैसे ही उस छत पर गई वहां एक सुंदर युवती पानी में भीग रही थी। उसे देखकर मुझे अजीब सा अहसास हुआ। शायद ऐसा अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। फिर क्या उस दिन के बाद से मैं हर शाम अपनी बालकनी पर होता था और उस लडक़ी को मेरी निगाहें ढूँढूती रहती थी। अचनक वह लडक़ी किताब लेकर अपनी छत पर आई और घूम-घूम कर पढऩे लगी। मैं एकटक उसी को देख रहा था। अचानक उसकी और मेंरी नजरं एक हो गई। मैं डर गया और अंदर चला गया, लेकिन वह काफी देर तक वहीं रही। थोड़ी देर बाद मैं फिर बाहर निकला और हम दोनों ने एक दूसर को देखकर ऐसा दिखाया जैसे हम किसी और का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद से हमारा यह शिलशिला रोज चलने लगा। धीर-धीर हम दोनों की बातचीत शुरू हो गई। एक दिन हम शाम को बात कर रहे थे कि मेरे गांव का एक मित्र आ गया। उसने मेरी प्रतिक्रिया जानकर मुझे समझाया कि तुम गांव के लडक़े हो और यहां कुछ बनने आए हो। इसके बाद उसने इसकी शिकायत मेर घर पर की और मुझे वह रूम छोडऩा पड़ा। उसके बाद लगभग 3 महीनों तक मैं उस गली नहीं गया। जब 3 महीने बाद गया तो पता चला कि उस लडक़ी की शादी तय हो गई है। आखिर उस लडक़ी से मरी आखरी मुलाकात 14 जुलाई 4002 को हुई। उसने भी मुझे समझाया कि अब वह किसी और की होने वाली है और वह आगे से मुझसे नहीं मिल पाएगी। उसने जाते-जाते मुझसे कसम ली कि मैं अब अपने करियर की ओर ध्यान दूंगा। और आज तक मुझे उसकी वह कसम याद है और मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हूं।

Monday, November 29, 2010

संसद का शीतसत्र या फिर नौटंकी

नौ नवंबर से शुरू संसद का शीतसत्र सोमेवार 29 नवंबर तक नहीं चल सका। इन 20 दिनों के दौरान एक भी विधेयक यहां पारित नहीं किया जा सका। जैसे ही सत्र शुरू होता है विपक्षी दल अपनी मांग को लेकर स्पीकर के पास आ जाते हैं और वे तुरंत संसद को स्थगित कर देते हैं। आखिर राजनीतिक पार्टियां और सरकार ऐसा करके जनता को क्या साबित कराना चाहती हैं।
जब मैं छोटा था तो हमारे गांव में नौटंकी होती थी। उसमें कई ड्रामें भी खेले जाते थे। एक ड्रामा आज भी मुझे याद है खून भरी मांग। उसमें हिरोइन अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए खलनायक से न्याय मांगती रहती है और न्याय न मिलने पर वह डकैत बन जाती है, और सब को मारती है।
संसद का यह शीतसत्र भी मुझे कुछ इस नौटंकी की ही तरह लग रहा है। भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस से अपनी चुनावी हार का बदला लेने और राजनीतिक रोटी सेकने के लिए बार-बार शीतसत्र न चलने देकर जंग का ऐलान कर रही हैं और इस जंग में कांग्रेस के कई भ्रष्टाचार में लिप्त नेता (घोटाला करने वाले) अपने पद की बलि दे चुके हैं। इसके बाद भी विपक्षी पार्टियां इन घोटालों की जांच के लिए जेपीसी की मांग पर अड़ी हैं। और कांग्रेस उनकी मांग को मानने के लिए तैयार नहीं है।
मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपा और अन्नाद्रमुक जैसी सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसी नौटंकी क्यों कर रही हैं। इन पार्टियों को भ्रष्टाचार खत्म करने का इतना ही शौक है तो फिर क्यों नहीं ऐसा कानून बनाती कि जिस राजनेता या नेता के ऊपर किसी भी प्रकार का घोटाला करने का दोष सिद्ध हो जाएगा उसको दुबारा चुनाव लडऩे का हक नहीं होगा और उसे वही सजा मिलेगी जो आम आदमी को मिलती है? क्यों नहीं सारी पार्टियां इस कानून का प्रस्ताव रखती? क्यों नहीं ऐसा कानून बनाया जा रहा है? सभी नेता डरते हैं कि यदि उनकी पोल खुल गई तो फिर उनका क्या होगा? क्या वे सिर्फ आम जनता के लिए ही कानून बनाना जानते हैं? उनको जनता की खून-पसीने की कमाई को बर्बाद करने का हक किसने दिया? क्या कभी किसी सरकार ने एसएमएस के जरिए या पत्र व्योहार के द्वारा इस बार में जनता की राय जानने की कोशिश की? क्यों आम आदमी में जातिवाद का बीज बोकर राजनीतिक पार्टियां शासन कर रही हैं? आखिर उनमें और 1947 के पहले के अंग्रेजी शासन में क्या फर्क है? अंग्रेज फूट डालों और राजनीति करो की नीति अपनाते थे और आज की राजनीतिक पार्टियां जातिवाद फैलाओं और राज करो की नीति अपना रही हैं। अगर कोई राजनीतिक पार्टी मेरी बात को झूठा साबित करना चाहती है तो पहले वह इस बात का जवाब दे कि क्या यह जरूरी है कि जिस क्षेत्र में जिस जाति के लोग ज्यादा हों वहां उसी जाति का उम्मीदेवार खड़ा किया जाए। या जब मंत्रिपद बांटा जाए तो यह देखा जाए कि फला जाति का एक भी विधायक या सांसद मंत्री नहीं बना। क्या उम्मीदवारों की योग्यता और उसके कार्यों का कोई मोल नहीं है।
मुझे जितना गर्व है कि मैं एक हिन्दुस्तानी हूं, उतनी अपने देश की रानीतिक पार्टियों पर घिन आती है कि वो महज अपने मतलब के लिए ऐसी घटिया राजनीति करते हैं और देश का ढेर सारा पैसा उस देश के पास रखते हैं जहां से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
मैं आपको एक व्यंग भरे लहजे में नेता का पहाड़ा बताता हूं। आपको इसे पढ़कर हंसी तो आएगी पर उसके बाद इस बार में विचार जरूर करिएगा क्यों कि यह केवल एक व्यंग नहीं बल्कि पूरी हकीकत द्वारा लिखी हकीकत है।
नेता * 1 = नेता
नेता * 2 = दगाबाज
नेता * 3 = तिगड़मबाज
नेता * 4 = 420
नेता * 5 = पुलिस दलाल
नेता * 6 = छैल छबीला
नेता * 7 = सत्ताधारी
नेता * 8 = अड़िंगमबाज
नेता * 9 = नमाखराम
नेता * 10 = सत्यानाश
नोट- इस बार में आपके विचार जरूर चाहिए। क्योंकि एक हिंदुस्तानी होने के नाते ये आपका फर्ज है?