Friday, November 26, 2010

अच्छाई पर होवी होती राजनीति

15 अगस्त 1947 में जब भारत आजाद हुआ तब आजादी की लड़ाई लडऩे वाले हमारे पुरोधा इतने खुश थे कि चलो अब हमारी आने वाली पीढ़ी स्वतंत्र भारत में रहेगी। अब उन्हें किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी, और न ही कोई अंग्रेज उन्हें सता सकेगा। पर शायद उन लोगों ने यह नहीं सोचा था कि आने वाला भारत भ्रष्टाचार और राजनीति की ऐसी जंजीर में जकड़ जाएगा कि उससे आजादी दिलाना शायद ही मुमकिन हो पाए।
आजादी के समय भी राजनीति थी और आज आजादी के 64 साल बाद भी राजनीति है। पर पहले राजनीति ये थी कि हम किस तरह से अपने देश को दूसर विकसित देशों की श्रेणी में लाएं और आज राजनिति ये है कि किस तरह से दूसर नेता द्वारा किए अच्छे काम को बंद कर दें और अपनी मर्जी चलाएं।
मैं सभी नेताओं के अच्छे कार्यों की महिमामंडन तो यहां नहीं करने जा रहा, लेकिन कुछ ऐसे कार्यों की बात कर रहा हूं जो मेरी नजर में अच्छे थे पर उन्हें बंद कर दिया गया।
मैं बात करूंगा रलेवे से जब लालू यादव रेल मंत्री बने थे तो उन्होंने कई बुरे कार्यों के चलते दो अच्छे कार्य किए थे पहला तो ये था कि उन्होंने गरीब रथ चलाई। इससे मध्यम वर्ग भी एसी में सफर कर सका। दूसरा सबसे बड़ा काम यह कि सभी रलेवे स्टेशनों पर मिट्टी के कुल्हड़ का प्रयोग हुआ। इस आदेश के बाद से हमार देश को कई मायनों लाभ पहुचा। पहला तो यह कि हमार देश में जो मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार थे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया, दूसरा लोगों को शुद्ध बर्तनों में चाय की चुसकी लेने का आनंद मिला और तीसरा सबसे बड़ा लाभ हमारे देश से प्लास्टिक पाल्यूशन कम हुआ। आज रोज विज्ञापनों में लोगों से यह अपील की जाती है कि पालीथिन और प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग न करें। क्योंकि प्रयोग के बाद ये मिट्टी में दबाने के बाद भी सड़ते गलते नहीं और उल्टे जमीन की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर देते हैं।
लेकिन यहां भी राजनीति होवी हुई ममता दीदी आईं फिर से प्लास्टिक के बर्तनों में चाय दी जाने लगी और कुम्हार फिर से अपनी आर्थिक तंगी से जूझने लगे। आखिर ऐसा क्यों होता है? क्यों नए नेता सत्ता में आने के बाद पुराने नेताओं द्वारा किए अच्छे कामों को नजरंदाज कर देते हैं? क्यों ऐसे कामों पर आवाज नहीं उठाई जाती? मेरी राय में होना तो ये चाहिए कि हमार देश में पालीथिन और यूज एण्ड थ्रो के नाम से पहचानी जाने वाली सभी प्लास्टि के बर्तनों को बनाने वाली कंपनियों को बंद कर देना चाहिए। जो लोग ऐसी चीजों का उपयोग करें उन पर शख्त पाबंदी लागानी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में हमारे देश की ये हालत हो जाएगी जब पुरातत्व वेत्ता किसी जगह की खुदाई करेंगे तो वहां ऐतिहासिक चीजों की बजाए पालीथिन के ढेर निकलेंगे। हामारे देश की जमीनें बंजर हो चुकेंगी और तब हमरे पास हाथ पर हाथ धरे रहने के अलोवा कोई चारा नहीं बचेगा। इस लेख में मैंने लालू के कार्यों को सिर्फ  उदाहरण के तौर लिया है आसलियत में ऐसी हजारों योजनाएं आई जो जनता के लिए काफी लाभप्रद रहीं पर दूसरी सरकार के आते ही उन्हें बंद कर दिया गया।   
नोट- इस बार में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं कि इस गंभीर समस्या से मुक्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए। आपके जेवाब के इंतजार में आपका मित्र संदीप उपाध्याय, आज समाज दिल्ली

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