Monday, November 29, 2010

संसद का शीतसत्र या फिर नौटंकी

नौ नवंबर से शुरू संसद का शीतसत्र सोमेवार 29 नवंबर तक नहीं चल सका। इन 20 दिनों के दौरान एक भी विधेयक यहां पारित नहीं किया जा सका। जैसे ही सत्र शुरू होता है विपक्षी दल अपनी मांग को लेकर स्पीकर के पास आ जाते हैं और वे तुरंत संसद को स्थगित कर देते हैं। आखिर राजनीतिक पार्टियां और सरकार ऐसा करके जनता को क्या साबित कराना चाहती हैं।
जब मैं छोटा था तो हमारे गांव में नौटंकी होती थी। उसमें कई ड्रामें भी खेले जाते थे। एक ड्रामा आज भी मुझे याद है खून भरी मांग। उसमें हिरोइन अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए खलनायक से न्याय मांगती रहती है और न्याय न मिलने पर वह डकैत बन जाती है, और सब को मारती है।
संसद का यह शीतसत्र भी मुझे कुछ इस नौटंकी की ही तरह लग रहा है। भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस से अपनी चुनावी हार का बदला लेने और राजनीतिक रोटी सेकने के लिए बार-बार शीतसत्र न चलने देकर जंग का ऐलान कर रही हैं और इस जंग में कांग्रेस के कई भ्रष्टाचार में लिप्त नेता (घोटाला करने वाले) अपने पद की बलि दे चुके हैं। इसके बाद भी विपक्षी पार्टियां इन घोटालों की जांच के लिए जेपीसी की मांग पर अड़ी हैं। और कांग्रेस उनकी मांग को मानने के लिए तैयार नहीं है।
मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपा और अन्नाद्रमुक जैसी सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसी नौटंकी क्यों कर रही हैं। इन पार्टियों को भ्रष्टाचार खत्म करने का इतना ही शौक है तो फिर क्यों नहीं ऐसा कानून बनाती कि जिस राजनेता या नेता के ऊपर किसी भी प्रकार का घोटाला करने का दोष सिद्ध हो जाएगा उसको दुबारा चुनाव लडऩे का हक नहीं होगा और उसे वही सजा मिलेगी जो आम आदमी को मिलती है? क्यों नहीं सारी पार्टियां इस कानून का प्रस्ताव रखती? क्यों नहीं ऐसा कानून बनाया जा रहा है? सभी नेता डरते हैं कि यदि उनकी पोल खुल गई तो फिर उनका क्या होगा? क्या वे सिर्फ आम जनता के लिए ही कानून बनाना जानते हैं? उनको जनता की खून-पसीने की कमाई को बर्बाद करने का हक किसने दिया? क्या कभी किसी सरकार ने एसएमएस के जरिए या पत्र व्योहार के द्वारा इस बार में जनता की राय जानने की कोशिश की? क्यों आम आदमी में जातिवाद का बीज बोकर राजनीतिक पार्टियां शासन कर रही हैं? आखिर उनमें और 1947 के पहले के अंग्रेजी शासन में क्या फर्क है? अंग्रेज फूट डालों और राजनीति करो की नीति अपनाते थे और आज की राजनीतिक पार्टियां जातिवाद फैलाओं और राज करो की नीति अपना रही हैं। अगर कोई राजनीतिक पार्टी मेरी बात को झूठा साबित करना चाहती है तो पहले वह इस बात का जवाब दे कि क्या यह जरूरी है कि जिस क्षेत्र में जिस जाति के लोग ज्यादा हों वहां उसी जाति का उम्मीदेवार खड़ा किया जाए। या जब मंत्रिपद बांटा जाए तो यह देखा जाए कि फला जाति का एक भी विधायक या सांसद मंत्री नहीं बना। क्या उम्मीदवारों की योग्यता और उसके कार्यों का कोई मोल नहीं है।
मुझे जितना गर्व है कि मैं एक हिन्दुस्तानी हूं, उतनी अपने देश की रानीतिक पार्टियों पर घिन आती है कि वो महज अपने मतलब के लिए ऐसी घटिया राजनीति करते हैं और देश का ढेर सारा पैसा उस देश के पास रखते हैं जहां से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
मैं आपको एक व्यंग भरे लहजे में नेता का पहाड़ा बताता हूं। आपको इसे पढ़कर हंसी तो आएगी पर उसके बाद इस बार में विचार जरूर करिएगा क्यों कि यह केवल एक व्यंग नहीं बल्कि पूरी हकीकत द्वारा लिखी हकीकत है।
नेता * 1 = नेता
नेता * 2 = दगाबाज
नेता * 3 = तिगड़मबाज
नेता * 4 = 420
नेता * 5 = पुलिस दलाल
नेता * 6 = छैल छबीला
नेता * 7 = सत्ताधारी
नेता * 8 = अड़िंगमबाज
नेता * 9 = नमाखराम
नेता * 10 = सत्यानाश
नोट- इस बार में आपके विचार जरूर चाहिए। क्योंकि एक हिंदुस्तानी होने के नाते ये आपका फर्ज है?

3 comments:

  1. कांग्रेस सरकार का मतलब ही शीत कालीन है मजा आया पढ़ के

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  2. कांग्रेस सरकार का मतलब ही शीत कालीन है मजा आया पढ़ के

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  3. बिलकुल सही कहा आपने....सब लोग इस बात से भली-भाती परिचित है कि संसद की एक कार्रवाही में लगभग 7.5 करोड़ का खर्च आता है। ये नेता शायद इतना पैसा नौटंकी देखने में खर्च करते होंगे। इसलिए इन्हें संसद भी नौटंकी ही लगती है।

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