Tuesday, May 10, 2011

लादेन की मौत हकीकत या अफवाह

औसामा बिन मोहम्मद बिन अवद बिन लादेन यानी आतंक का दूसरा नाम। 10 मार्च 1957 को रियाध, सउदी अरब में एक धनी परिवार में जन्मे ओसामा बिन लादेन अल कायदा नामक आतंकी संगठन का प्रमुख था। यह संगठन 9 सितंबर 2001 को अमरीका के न्यूयार्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के साथ विश्व के कई देशों में आतंक फैलाने और आतंकी गतिविधियां संचालित करने का दोषी है।
अमेरिका में 9/11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसाम द्वारा किए विध्वंसकारी कांड ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। फिर क्या तब दिन से लेकर मिशन एबटाबाद के दिन तक मानों ओसामा अमेरिका सबसे बड़ा दुश्मन था। 9/11/2001 से लेकर तीन मई 2011 तक अमेरिका को बस यही तलाश थी कि आखिर लादेन कहां छुपा है। और जैसे अमेरिका की खुफिया एजेंसी को ये पता चला कि लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में है। उसने तुरंत कार्रवाई की और लादेन की मौत का दिन मुकर्रर कर दिया।
बस यहीं से मेरे संदेह की घंटी घनघनाने लगी कि आखिर जो आतंकवादी अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन रहा... जिसको ढूंढने के लिए इस सबसे ताकवर देश ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया क्या वह लादेन के मिलने पर उसे तुरंत मौत के घाट उतार देगा... नहीं कभी नहीं अगर अमेरिका ओसामा को मारना ही चाहता तो कब का मार देता उसे इतना कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती... ये मेरा व्यक्तिगत विचार है कि लादेन अभी जिंदा है और अमेरिका के पास कैद है। इसके मेरे पास तर्क भी हैं और हो सकता है कि वो आपको पसंद आएं या न आएं पर मैं फिर अपने ब्लाग के माध्यम से अपने तर्क रख रहा हूं...
1- मेरा पहला तर्क अमेरिका के मिशन एबटाबाद के बाद ओसामा की जो तस्वीरें रिलीज की गईं वो मेरे विचारों से मैच नहीं खाती... क्यों की ये सभी जानते हैं कि लादेन बहुत बड़ा जिहादी था और वे मर सकता था लेकिन जेहाद के खिलाफ नहीं जा सकता था... इस आधार पर लादेन के मरने के बाद जो तस्वीरें रिलीज की गईं उनमें लादेन की दाढ़ी काली दिखाई गई... जबकी हकीकत में लादेन की दाढ़ी सफेद हो गई थी। अगर आप कहें कि उसने डाई की हुई होगी तो शायद मेरा मानना है कि जेहाद में ये सब करना मना है... इसलिए लादेन और डाई कभी नहीं...
2- मेरा दूसरा तर्क जब अमेरिका को लादेन का पता लग ही गया था और उसे मारना ही उसका मिशन था तो आज के आधुनिक दौर में अमेरिका पास ऐसी टेक्नोलाजी है कि वह अपने देश में ही बैठे बैठे मिनी मिशाइल के जरिए एबटाबाद में लादेन की हवेली को टारगेट करके उड़ा देता। फिर उस हवेली में कौन मरता या नहीं इससे अमेरिका को कोई  फर्क नहीं पड़ता...
3- मेरा तीसरा तर्क जब अमेरिका के चौपर एबटाबाद पहुंचे और वहां अमेरिकी कमांडों ने कुरियर के भाई, लादेन के बेटे खालिद को गोली मार दी और उसकी पत्नी की टांग में गोली मार कर घायल कर दिया तो फिर अकेले लादेन को काबू करना उन कामांडो के लिए बड़ी बात नहीं थी, और वह लादेन की लाश अमेरिका लाने की बजाए उसे जिंदा अपने देश ले जाता।
4- मेरा चौथा तर्क इस मिशन के बाद अमेरिका जो दावे कर रहा है कि एबटाबाद में लादेन की हवेली से नेवी सील्स के कमांडोज को पांच कंप्यूटर, दस हार्ड ड्राइव और 100 से ज्यादा डाटा स्टोरेज डिवाइस जब्त किए हैं. आशंका हैं। और इनके बल पर वह ये कह रहा है कि इनमें अल कायदा के सदस्यों और आगामी हमलों के बारे में जानकारी भी होगी। तो मैं कहूंगा कि अमेरिका इतना मूर्ख नहीं है कि वह जानकारियों की सबसे बड़ी डिवाइस (ओसामा बिन लादेन) को ही मार दे... जिससे उसे काफी अहम राज मिल सकते हैं....

इसके अलावा भी मेरे पार लादेन के जिंदा होनें के काफी छोटे छोटे तर्क हैं। पर मैं अपने इन्हीं तर्कों के आधार पर ये जानना चाहता हूं कि मैं कहां तक सहीं हूं। मुझे आपकी राय का इंतजार है ताकी मैं उनको भी अपने ब्लाग के माध्यम से दूसरों तक पहुंचा सकूं।

3 comments:

  1. good sir.....jo aapne socha hai , maine bhi face ko lekar confuse tha....bt wts wright n wts wrong its depend upon DNA test.......waise aap in tarko se kabhi kareeb pahunch rahe hai.....thoda aur deep me jayenge to confusion clear ho jayega.

    AVINASH

    ReplyDelete
  2. आप ही नहीं हर कोई जागरुक व्यक्ति शक करेगा कि लादेन मरा कि नहीं।अमेरिका है भाई कुछ भी बोल सकता है उसका झूठ भी सही लगता है लोगो को।

    ReplyDelete
  3. संदीप जी आपने बहुत अच्छा प्रसास किया है। लेकिन आपकी बातों से मैं असहमत हूं। मैं ज्यादा कुछ न कहते हुए सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि आप जिस फोटो और डाई की बात कर रहे हैं , शायद आपको पता नहीं कि वह फोटो किसी ने शरारतवश डाल दिया था। यह बात लादेन की मौत के ही दिन शाम को ही पता चल गई थी।
    दूसरी और अंतिम बात यह है कि लादेन मारा जा चुका है। लेकिन वह खुद मरा है उसे किसी ने मारा नहीं है।
    आपने जो शंका जाहिर की वह काबिलेतारीफ है। आखिर पत्रकार का धर्म ही यही है।

    ReplyDelete